मृत्तिका (Mrittika) | Class 10 Hindi Elective – ASSEB

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मृत्तिका

एक या दो वाक्य में उत्तर दो

1. मूत्रिका’ शीर्षक कविता में ‘चिन्मयी शक्ति’ का क्या अर्थ है?
Ans: जब उद्योगी मनुष्य अहंभाव को त्याग कर परमब्रह्म को पुकारता है तब मिट्टी चिन्मयी शक्ति बनकर आराध्य देवी बन जाती है।

2. रौंदे और जोते जाने पर भी मिट्टी किस रूप में बदल जाती है?
Ans: रोंदे और जोते जाने पर भी मिट्टी मांँ के रूप में बदल जाती है।

3. कवि नरेश मेहता जी के अनुसार सबसे बड़ा देवत्व क्या है?
Ans:  कवि नरेश मेहता जी के अनुसार मनुष्य का पुरुषार्थ ही सबसे बड़ा देवत्व है।

4. मिट्टी के ‘मातृरूपा’ होने का क्या आशय है?
Ans: जन्मदाता मातृ की तरह मिट्टी भी अपनी गर्भ से भिन्न प्रकार के अनाज आदि उपजाते है और इससे हमें पालन-पोषण करती है । इसलिए वह भी हमारी । मातृरूपा है । 

5. नरेश मेहता की पठित कविता का नाम क्या है?
Ans: कविता का नाम ‘मृत्तिका’

6. जब मनुष्य उद्यमशीन रहकर अपने अहंकार को पराजित करता है तो मिट्टी उसके लिए क्या बन जाती है?
Ans: जब मनुष्य उद्यमशीलता रहकर अपने अहंकार को पराजित करता है तो मिट्टी प्रतिमा का रूप बनकर मनुष्य के लिए पूजनीय बन जाती है।

7. जब तुम मुझे _____ रौदते हो।
Ans: जब तुम मुझे पैरों से रौंदते हो।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो

1. ‘मृत्तिका’ कविता में पुरुषार्थी मनुष्य के हाथों आकर पाती मिट्टी के किन-किन स्वरूपों का उल्लेख किया गया है?
Ans: मिट्टी और मनुष्य का संबंध सदियों से होता आया है। पुरुषार्थी मनुष्य ने मिट्टी को अपने जीवन शैली के लिए भिन्न-भिन्न कार्य के लिए इस्तेमाल किया है। जब भी मिट्टी किसी किसान के हाथों में पड़ जाती है तो मिट्टी मातृरूपा बनकर बच्चों की भूख मिटाने लगती है। जब मिट्टी कुम्हार के हाथों का स्पर्श पाकर चाक पर चढ़ती है तो वह प्रेमिका का रूप ले लेती है।

जब मिट्टी खिलौनों के रूप में बच्चों के हाथ में जाती है तब वह बच्चों को संतान जैसा सुख दिलाती है। मनुष्य जब अपने अहंकार को त्यागकर मिट्टी को उच्च स्थान देता है तो मिट्टी प्रतिमा बन मनुष्य के लिए पूजनीय बन जाती है।

2. मिट्टी और मनुष्य में तुम किस भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण मानते हो और क्यों ?
Ans: मिट्टी और मनुष्य में मैं मिट्टी की भूमिका को ही अधिक महत्वपूर्ण मानती हूँ । क्योंकि मिट्टी में जो स्थायित्व है वह मनुष्य में नहीं । दूसरी और मिट्टी पहले से ही बनी हुई है । मनुष्य का शरीर भी मिट्टी से बनी है और एक दिन मनुष्य को मिट्टी में मिलना ही पड़ेगा । इसके अलावा, मिट्टी सिर्फ मनुष्य मात्र का जीवन आधार नहीं बल्कि वह स्रष्टा के अन्य जीव-जन्तुओं का भी जीवन दायीनी है ।

3. पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व क्यों कहा गया है ?
Ans: पुरुषार्थ का अर्थ है उद्योग, यानी मनुष्य द्वारा वस्तु निर्माण करने का कार्य। मनुष्य अपने परिश्रम के बल पर बड़े से बड़े कार्य आसानी से कर लेते हैं। पुरुषार्थ से मिट्टी को भी कई रूप देकर सोना बनाया जा सकता है। पुरुषार्थ के बल पर असंभव कार्य भी संभव किया जा सकता है। तथा ईश्वर को भी पाया जा सकता है। इसीलिए पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व कहा गया है।

4. मिट्टी के किस रूप को ‘प्रिय रूप’ माना है? क्यों ?
Ans: मिट्टी के कलश रूप को प्रिय रूप माना है। क्योंकि उसी घड़े में शीतल जल भरकर लाया जाता है और मनुष्य उस जल को पीकर प्यास बुझाता है। इस कारण वह साधारण सा दिखने वाला मिट्टी का कलश सभी का घनिष्ठ बन जाता है। तथा सभी के लिए घड़े में जल भरकर लाने वाली प्रिया बन जाती है।

5. मिट्टी प्रजारूपा कैसे हो जाती है?
Ans: कवि के अनुसार मनुष्य मिट्टी को प्रजा के रूप में भी बदल दिया है । बच्चे खिलौने के लिए जब मचलने लगते है तब मनुष्य मिट्टी से नये-नये खिलौने बना देता है । उसे लेकर शिशु संतुष्ट और प्रसन्न हो जाते है । नये-नये खिलौने पर जव शिशु-हाथों का कोमल स्पर्श लगता तो मिट्टी को राजाओं से न्याय, प्यार चाहनेवाली प्रजा का सा महसूस हो जाती है ।

सप्रसंग व्याख्या करो

1. पर जब भी तुम अपने पुरुषार्थ पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो तब मैं अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाता हूँ ।
Ans: संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत नरेश मेहता जी द्वारा रचित ‘मृत्तिका’ नामक कविता से लिया गया है।

प्रसंग: मिट्टी किस प्रकार प्रतिमा का रूप ले लेती है इसका वर्णन किया गया है।

व्याख्या: मनुष्य जब अपने अहंकार को त्याग कर मिट्टी को एक प्रतिमा का रूप देकर उसे पूजता है, तो वह मिट्टी उस मनुष्य के लिए ईश्वर का रूप ले लेती है। तथा मिट्टी कहती है कि जब भी मनुष्य अपने पुरुषार्थ से उसे सर्वोच्च शक्ति का रूप देकर पुकारते हैं, तो मिट्टी ग्राम वासियों के लिए देवता बन जाती है।

2. यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।
Ans: संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आलोक भाग-2 के अंतर्गत नरेश मेहता जी द्वारा रचित ‘मृत्तिका’ कविता से लिया गया है।

प्रसंग: यहांँ मिट्टी और पुरुषार्थ मनुष्य के संबंध पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या: यहांँ मिट्टी कह रही है कि पुरुषार्थ मनुष्य ने ही उसे नया रंग-रूप और स्वरूप देकर निखारा है। तथा मिट्टी और मनुष्य के पुरुषार्थ में सीधा संबंध है। इसलिए मिट्टी कह रही है कि मनुष्य तुम परिश्रम करने वाले पुरुषार्थ हो और मैं रंग-रूप और आकार पाती सिर्फ मिट्टी हूंँ। इसीलिए मिट्टी भी मानती है कि मनुष्य का परिश्रम ही उसका सच्चा देवत्व है।

भावार्थ लिखो

1. पर जब भी तुम…….आराध्य हो जाती हूँ।
भावार्थ: भाव यह है कि मिट्टी से ही भगवान की मूर्ति का निर्माण होता है। जब व्यक्ति का पुरुषार्थं हार जाता है, तब परब्रह्म को पुकारता है और मिट्टी की बनी प्रतिमा उसके लिए पूज्य बन जाती है। अर्थात मनुष्य अपने पुरुषार्थ पर घमंड करता है। जब वह पुरुषार्थ के बल पर सफलता नहीं प्राप्त कर सकता, तब उसका अहंकार पराजित हो जाता है। ऐसे समय में वह मिट्टी की प्रतिभा के माध्यम से चिन्मयी शक्ति की आराधना करता है।

2. विश्वास करो……..स्वरूप पाती मृत्तिका ।
भावार्थ: देवत्व कोई अलौकिक वस्तु नहीं है, बल्कि वह मनुष्य का पुरुषार्थ ही है । पुरुषार्थ से ही मिट्टी अनेक रूपों में ढलती है। यदि मिट्टी पर प्रयत्न न किया जाए तो उसका कोई भी रूप नहीं बन सकता है। पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व इसलिए कहा गया है क्योंकि पुरुषार्थी मनुष्य ही मिट्टी को नए-नए रूपों में ढालता है। वह इस मिट्टी से सुंदर-सुंदर खिलौने एवं मूर्तियाँ बनाता है। मिट्टी स्वयं कोई आकार ग्रहण नहीं कर सकती। यह सब मनुष्य के श्रम से ही संभव होता है।

3. मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ………मातृरूपा हो जाती हूँ।
भावार्थ: मृतिका कविता सीधे सरल प्रतिबिंब के सहारे पुरुषार्थी मनुष्य और मिट्टी के संबंध पर प्रकाश डाला है। मृत्तिका केवल मिट्टी ही है पर जब पुरुषार्थी मनुष्य इस मिट्टी को अपने पैरों से रौंदकर हल के फाल से विदीर्ण कर मिट्टी को उपजाऊ बनाकर उसमें फसल उगवाता है। और जब यही फसल बड़ा होकर फलने-फूलने लगता है, तो चारों ओर हरियाली छा जाती है तब मिट्टी धन-धान्य से परिपूर्ण होकर मातृरूपा हो जाती है अर्थात कृषक के अथक परिश्रम के द्वारा मिट्टी उपजाऊ बनती है और फसल उगाने में समर्थ होता है अर्थात उद्यमशील पुरुष के हाथों आकर मिट्टी मातृरूपा बन जाती है।

4. जब तुम मुझे हाथों से …….. प्रजारूपा हो जाती हूँ।
भावार्थ: जब पुरुषार्थी मनुष्य अपने परिश्रम से मिट्टी को घड़े का रूप देता है, उन्हीं घड़ों में हमारी प्रिय पत्नी कुएँ से जल भरकर लाती है, उस समय मिट्टी अंतरंग प्रिया हो जाती है। अर्थात् जीवन में सरसता का संचार करने वाली हो जाती है। यही मिट्टी खिलौने में परिवर्तित होकर बच्चों के हाथ में पहुँचकर प्रजा रूप हो जाती है। अर्थात संतान जैसी बन जाती है।

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